Ad

jute farming

जूट की खेती से संबंधित विस्तृत जानकारी

जूट की खेती से संबंधित विस्तृत जानकारी

जूट एक द्विबीजपत्री, रेशेदार पौधे के अंतर्गत आने वाली फसल है। इसका तना पतला एवं बेलनाकार का होता है। जानकारी के लिए बतादें कि इसके रेशे का इस्तेमाल तिरपाल, टाट, रस्सियाँ, बोरे, दरी, तम्बू, निम्नकोटि के कपड़े एवं कागज निर्मित करने के लिए किया जाता है। साथ ही, जूट एक नकदी फसल है। इससे लोगों को नकद पैसा अर्जित होता है। भारत के उड़ीसा, असम, उत्तर प्रदेश, बंगाल और बिहार के कुछ तराई इलाकों में जूट की खेती की जाती है। इससे तकरीबन 38 लाख गाँठ (एक गाँठ का भार 400 पाउंड) जूट उतपन्न होता है। जूट पैदावार की तकरीबन 67 प्रतिशत भारत में ही खपत है। 7 प्रतिशत किसान के पास रह जाता है, तो वहीं शेष बचा हुआ जूट बेल्जियम, जर्मनी, फ्रांस, इटली, संयुक्त राज्य, अमरीका और ब्रिटेन को निर्यात होता है। बतादें, कि ब्राज़िल, अफ्रीका, अमरीका आदि बाकी देशों में इसका उत्पादन करने का प्रयास किया गया है। लेकिन, भारत के जूट के सामने वह आजतक टिक नहीं पाए।

जूट की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु एवं मृदा

किसी भी फसल की बेहतरीन पैदावार के लिए उस स्थान की मृदा एवं जलवायु अपनी अहम भूमिका निभाती है। जानकारी के लिए बतादें कि जूट की खेती के लिए गरम और नम जलवायु उपयुक्त मानी जाती है। वहीं, तापमान 25-35 सेल्सियस एवं आपेक्षिक आर्द्रता 90 प्रतिशत रहनी चाहिए। साथ ही, हल्की बलुई, डेल्टा की दोमट मृदा में खेती बेहतर होती है। इस नजरिये से बंगाल की जलवायु इसके लिये सबसे ज्यादा अनुकूल होती है। खेत की जुताई बेहतर ढंग से होनी चाहिए।

जूट के पौधों से कितने प्रकार के रेशे प्राप्त होते हैं

जूट के रेशे दो तरह के जूट के पौधों से अर्जित होते हैं। यह पौधे टिलिएसिई कुल के कौरकोरस कैप्सुलैरिस और कौरकोरस ओलिटोरियस हैं। रेशे के लिये दोनों ही उत्पादित किए जाते हैं। प्रथम तरह की फसल कुल वार्षिक खेती के 3/4 हिस्से में और दूसरे तरह की फसल कुल खेती के शेष 1/4 भाग में होती है। यह मुख्यतः भारत और पाकिस्तान में उत्पादित किए जाते हैं। यह भी पढ़ें: केंद्र सरकार ने इस फसल के न्यूनतम समर्थन मूल्य में किया इजाफा, अब किसान होंगे मालामाल कैप्सुलैरिस काफी कठोर होता है और इसकी खेती ऊँची और नीची दोनों तरह की भूमियों में की जाती है। लेकिन, ओलिटोरियस की खेती सिर्फ ऊँची जमीन में होती है। कैप्सुलैरिस के बीज अंडाकार गहरे भूरे रंग के, पत्तियाँ गोल एवं रेशे सफेद पर कुछ कमजोर होते हैं। परंतु, ओलिटोरियस की पत्तियाँ वर्तुल, सूच्याकार और बीज काले रंग के होते हैं और रेशे सुंदर सुदृढ़ परंतु थोड़े फीके रंग के होते हैं। कैप्सुलैरिस की प्रजातियां देसीहाट, बंबई डी 154, आर 85, फंदूक, घालेश्वरी और फूलेश्वरी हैं। ओलिटोरियस की देसी, तोसाह, आरथू एवं चिनसुरा ग्रीन हैं। बीज से फसल उत्पादित की जाती हैं। बीज के लिये पौधों को पूर्णतयः पकने दिया जाता है। लेकिन, रेशे के लिये पकने से पूर्व ही काटा जाता है।

जूट की खेती में खाद एवं उर्वरक

जूट की खेती के अंतर्गत प्रति एकड़ 50 से 100 मन गोबर की खाद अथवा कंपोस्ट और 400 पाउंड लकड़ी या घास पात की राख डाली जाती है। हालाँकि, पुरानी मृदा में 30-60 पाउंड नाइट्रोजन डाला जा सकता है। कुछ नाइट्रोजन बोने के पूर्व एवं शेष बीजांकुरण के एक सप्ताह पश्चात देना चाहिए। पोटाश और चूने से भी फायदा होता है।

जूट की बिजाई का समुचित वक्त क्या होता है

नीची जमीन में फरवरी में एवं ऊँची भूमि में मार्च से जुलाई तक बिजाई होती है। सामान्यतः छिटक बोआई होती है। हालाँकि, आजकल ड्रिल का भी इस्तेमाल किया जाने लगा है। प्रति एकड़ 6 से लेकर 10 पाउंड तक बीज लगता है। पौधे को तीन से लेकर नौ इंच तक बड़े होने पर सर्वप्रथम गोड़ाई की जाती है। उसके पश्चात दो या तीन निराई और भी की जाती हैं। जून से लगाकर अक्टूबर तक फसल कटाई की जाती है। फूल झड़ जाने और फली निकल आने की स्थिति में ही फसल को काटना चाहिए। क्योंकि, विलंब करने पर पछेती कटाई से रेशे ताकतवर परंतु भद्दे एवं मोटे हो जाते हैं। साथ ही, उनके अंदर चमक नहीं होती है। बतादें, कि ज्यादा अगेती कटाई से उत्पादन कम एवं रेशे कमजोर पड़ जाते हैं।

जूट की कटाई और पौधरोपण

बतादें, कि जमीन की सतह से पौधों को काटा जाता है। तो कहीं-कहीं पौधे आमूल उखाड़े जाते हैं। इस कटी फसल को दो तीन दिन सूखी भूमि में छोड़ देते हैं, जिससे कि पत्तियाँ सूख और सड़ कर गिर जाती हैं। तब डंठलों को गठ्ठरों में बाँधकर मृदा, पत्तों, घासपातों इत्यादि से ढँककर छोड़ देते हैं। उसके उपरांत गठ्ठरों से कचरा हटाकर उनकी शाखादार चोटियों को काटकर निकाल लेते हैं। फिर पौधे गलाए जाते हैं। गलाने के दौरान दो दिन से लेकर एक माह तक का वक्त लग सकता है। यह काफी कुछ वायुमंडल के तापमान और जल की प्रकृति पर निर्भर करता है। गलने का कार्य कैसा चल रहा है, इसकी शुरुआत में प्रति-दिन जाँच करते रहते हैं। जब यह देखा जाता है कि डंठल से रेशे बड़ी ही आसानी से निकाले जा सकते हैं, तब डंठल को जल से निकाल कर रेशे अलग करके और धोकर सुखाते हैं। यह भी पढ़ें: किसानों को लिए बड़ी खुशखबरी, सरकार के इस फैसले से मिलेगा डबल फायदा रेशा निकालने वाला पानी में खड़ा रहकर, डंठल का एक मूठा लेके जड़ के समीप वाले छोर को छानी अथवा मुँगरी से मार-मार कर सभी डंठल की छिलाई कर लेता है। रेशा यानी डंठल टूटना नहीं चाहिए। फिलहाल, वह उसे सिर के चारों तरफ घुमा-घुमा कर जल की सतह पर पट रख कर, रेशे को अपनी तरफ खींचकर, अपद्रव्यों को धोके एवं काले धब्बों को चुन-चुन कर बाहर निकाल देता है। साथ ही, फिलहाल उसका जल निचोड़ कर धूप में सूखने हेतु उसे हवा में टाँग देता है। रेशों की पूलियाँ बाँधकर जूट प्रेस में पहुंचाई जाती हैं, जहाँ उनको भिन्न-भिन्न विलगाकर द्रवचालित दाब में दबाकर गाँठ निर्मित होती हैं। डंठलों में 4.5 से 7.5 प्रति शत रेशा रहता है।

जूट के रेशे का उत्पादन और उपयोगिता

अगर रेशे की बात की जाए तो इन रेशों की करीब छह से लेकर दस फुट तक लंबाई होती है। परंतु, विशेष अवस्थाओं में यह 14 से लेकर 15 फुट तक लंबे पाए गए हैं। शीघ्र का निकला रेशा अधिक कोमल, अधिक सफेद, ज्यादा मजबूत और अधिक चमकदार होता है। खुला रखने की वजह से इन गुणों का ह्रास होता है। जूट के रेशे का विरंजन कुछ सीमा तक माना जा सकता है। परंतु, विरंजन से बिल्कुल सफेद रेशा अर्जित नहीं होता है। रेशा आर्द्रताग्राही माना जाता है। छह से लगाकर 23 प्रतिशत तक रेशे में नमी रह सकती है। जूट का उत्पादन, भूमि की उर्वरता, फसल की किस्म, अंतरालन, काटने का वक्त इत्यादि अनेक बातों पर आधारित होता है। कैप्सुलैरिस का उत्पादन प्रति एकड़ 10-15 मन एवं ओलिटोरियस की 15-20 मन प्रति एकड़ होता है। बेहतर ढंग से जोताई करने पर प्रति एकड़ 30 मन तक उत्पादन हो सकता है। जूट की उपयोगिता की बात की जाए तो इसके रेशे से बोरे, हेसियन और पैंकिंग के कपड़े तैयार होते हैं। घरों की सजावट के सामान, अस्तर, रस्सियाँ, कालीन, दरियाँ, परदे भी बनते हैं। डंठल जलाने के कार्य में आती है एवं उससे बारूद के कोयले भी निर्मित किए जा सकते हैं। डंठल का कोयला बारूद हेतु बेहतर होता है। डंठल से लुगदी भी अर्जित होती है, जो कागज निर्मित करने के काम में आ सकती है।
जूट का इस्तेमाल किन-किन वस्तुओं के लिए किया जाता है

जूट का इस्तेमाल किन-किन वस्तुओं के लिए किया जाता है

जूट की खेती से किसान भाइयों को जबरदस्त आमदनी हो सकती है। चलिए जानने की कोशिश करते हैं, कि जूट का इस्तेमाल किन-किन चीजों को बनाने में होता है। जूट की खेती बेहद ही मशहूर है। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि जूट नेपाल, न्यूजीलैंड, ब्राजील, पाकिस्तान, भारत, बांगलादेश, चीन और थाईलैंड जैसे देशों में व्यापक पैमाने से उगाया जाता है। इसकी खेती किसानों के लिए काफी ज्यादा फायदेमंद साबित हो सकती है। क्योंकि, जूट से विभिन्न प्रकार की महत्वपूर्ण चीजों का निर्माण किया जाता है। इसका उपयोग उन वस्तुओं को निर्मित करने में किया जाता है, जिनकी मांग बाजार में काफी अधिक है। इसके अतिरिक्त जूट से निर्मित चीजों का भाव भी ज्यादा मिलता है। आपकी जानकारी के लिए बताने वाले हैं, कि जूट का इस्तेमाल किन-किन वस्तुओं को निर्मित करने में होता है।

जूट से बनने वाली चीजों की सूची

टैक्सटाइल उत्पाद: जूट एक तरह का पट्टू होता है, जो शुष्क जल अथवा घास के रेशों से निर्मित किया जाता है। जूट के रेशों को कपड़ों के उत्पादन में इस्तेमाल किया जाता है। जूट के कपड़े, साड़ी, शर्ट, कुर्ता, पैंट, लंबी और छोटी टोपी आदि निर्मित किए जाते हैं। जूट एक सामान्य और सुगंधित वस्त्र होता है, जिसको ग्रीष्मकाल में आरामदायक माना जाता है। ये भी पढ़े:
जूट की खेती से संबंधित विस्तृत जानकारी कारपेट: जूट के रेशों का इस्तेमाल कारपेट बनाने के लिए भी किया जाता है। इसको आकर्षक कारपेट बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जो कि घरों, ऑफिसों और बाकी जगहों की सजावट में इस्तेमाल होते हैं। इसके अतिरिक्त जूट के रेशों से जूते भी निर्मित किए जाते हैं। इनको पैरों के लिए बेहद सुरक्षित माना जाता है। जूट के बैग: जूट को बैगों के निर्माण में भी इस्तेमाल किया जाता है, जिन बैगों को निर्मित करने में इसका इस्तेमाल होता है। इसके अंतर्गत बीच बैग, राजमार्ग बैग, शॉपिंग बैग, हथियार बैग, सामग्री बैग आदि शम्मिलित हैं। जूट के बैग बाजार में काफी ज्यादा महँगा होता है। ये भी पढ़े: केंद्र ने जूट की फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाया, जूट उत्पादकों को हुआ फायदा जूट के आभूषण: जूट के आभूषण आपके सौंदर्य और स्टाइल को निखारने में सहायता करते हैं। जूट से हाथी के दांत की माला, झूमर, हार, बांगड़ा, चूड़ी आदि जैसे आभूषण तैयार किए जाते हैं।

इन चीजों को बनाने में भी जूट का होता है इस्तेमाल

बतादें, कि जूट का इस्तेमाल तकिये, टेबल मैट व मल्टीपर्पस यूज, रसोई के लिए पोछा, चप्पल, वेस्ट, बेल्ट और चादर जैसे उत्पाद भी निर्मित करने में किया जाता है। इससे आप यह अनुमान लगा सकते हैं, कि जूट से किसान कितनी आमदनी कर सकते हैं।
भारतीय जूट निगम ने पाट-मित्रो ऐप लाँच किया, किसानों की इस तरह करेगा मदद

भारतीय जूट निगम ने पाट-मित्रो ऐप लाँच किया, किसानों की इस तरह करेगा मदद

भारतीय जूट निगम ने 'पाट-मित्रो' ऐप लॉन्च किया है। जूट किसानों को समर्थन देने की दिशा में एक शानदार कदम उठाया है। कपड़ा मंत्रालय की सचिव रचना शाह ने ऐप का उद्घाटन किया, जिसका उद्देश्य किसानों को सर्वोत्तम जूट की खेती और बढ़ी हुई आमदनी के अवसरों के लिए आवश्यक जानकारी प्रदान करना है।

'पाट-मित्रो' ऐप की मुख्य विशेषताऐं क्या-क्या हैं ?

'पाट-मित्रो' ऐप किसानों को
जूट की खेती के विभिन्न पहलुओं पर बहुमूल्य जानकारी प्रदान करने के लिए डिजाइन किया गया है। प्रमुख विशेषताओं में शामिल हैं।
  1. जूट ग्रेडेशन मापदंडों पर जानकारी: ऐप जूट ग्रेडेशन मापदंडों पर विवरण प्रदान करता है, जिससे किसानों को उनकी जूट उपज की गुणवत्ता को समझने और बढ़ाने में सहायता मिलती है।
  2. किसान-केंद्रित योजनाएँ: किसानों को सीधे तोर पर लाभ पहुँचाने के लिए बनाई गई 'जूट-आईसीएआरई' जैसी योजनाओं की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
  3. मौसम का पूर्वानुमान: ऐप में मौसम का पूर्वानुमान भी सम्मिलित है, जो किसानों को मौसम की स्थिति के आधार पर सूचित फैसला लेने में सहायता करता है।
  4. खरीद नीतियां: किसान खरीद नीतियों पर अपडेट रह सकते हैं। यह सुनिश्चित करते हुए कि वे अपनी खेती की प्रथाओं को बाजार की आवश्यकताओं के साथ संरेखित करते हैं।


ये भी पढ़ें:
जूट का इस्तेमाल किन-किन वस्तुओं के लिए किया जाता है

'पाट-मित्रो' ऐप जूट किसानों की स्थिति को मजबूत करेगा 

अनावरित ऐप जूट किसानों और उद्योग को पुनर्जीवित करने में सहयोग करेगा। सूचना, तकनीकी प्रगति और बाजार के अवसरों तक पहुंच में वृद्धि के साथ, भारतीय जूट किसान एक उज्जवल भविष्य का द्वार खोल सकते हैं और क्षेत्र के सतत विकास में योगदान अदा कर सकते हैं।

'पाट-मित्रो' ऐप इन चुनौतियों का समाधान करेगा 

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि निरंतर तीन वर्षों तक बंपर फसल होने की वजह से बाजार में जूट फाइबर की पर्याप्त सप्लाई है। नतीजतन, बड़ी तादात में किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के जरिए समर्थन की जरूरत होती है। उम्मीद है, कि 'पाट-मित्रो' ऐप इन चुनौतियों का समाधान करेगा और किसानों को महत्वपूर्ण सहायता प्रदान करेगा।

ये भी पढ़ें:
केंद्र ने जूट की फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाया, जूट उत्पादकों को हुआ फायदा

पाट-मित्रो ऐप आने वाले समय में कई भाषाओँ में उपलब्ध होगा  

वर्तमान में अंग्रेजी में मौजूद 'पाट-मित्रो' ऐप को भविष्य में छह स्थानीय भाषाओं में लॉन्च करने की तैयारी है। यह विस्तार यह सुनिश्चित करेगा कि विभिन्न क्षेत्रों के जूट किसान ऐप के संसाधनों और जानकारी से लाभान्वित हो सकें।